Wed, 29 Oct 2025, 14:56 PM

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हर बच्चे के विकास की अपनी अलग प्रक्रिया होती है, अतः सभी बच्चों का बचपन एक जैसा नहीं हो सकता। साथ ही, उनके वृद्धि एवं विकास के विभिन्न आयामों में भी कई भिन्नताएं होती हैं। इसी संदर्भ में मनोगत्यात्मक विकास की समझ प्रशिक्षुओं में होनी चाहिए ताकि वे बच्चों द्वारा की जाने वाली सामान्य क्रियाओं के विषय में सूक्ष्म व मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित कर सकें। वर्तमान में सृजनात्मकता को विद्यालयी शिक्षा में विशेष स्थान देने पर जोर दिया जा रहा है। बच्चों को सृजनात्मक तौर पर सीखने-सिखाने के माहौल से जोड़ने के लिए अभिप्रेरणात्मक माहौल को बनाने की अपेक्षा होगी और सीखने की प्रक्रिया को रूढ़ीवादी दृष्टिकोण से आगे ले जाना होगा। जैसे कि खेल एक सशक्त माध्यम है सीखने-सिखाने का, लेकिन अधिकतर यह मानते हैं कि यह मनोरंजन मात्र का साधन है। एक शिक्षक या शिक्षिका को इन बिन्दुओं पर गहराई से सोचने-समझने की जरूरत है तभी वे अपने शिक्षण को प्रभावी बना पाएंगे। उपरोक्त बिन्दुओं से सम्बंधित कुल पांच इकाइयों को इस विषयपत्र के पहले भाग में प्रस्तुत किया जा रहा है। यह अपेक्षा है कि सभी प्रशिक्षु व प्रशिक्षक बाल विकास के इन विभिन्न आयामों को अपने शिक्षायी चिंतन एवं सीखने-सीखाने की प्रक्रिया में शामिल करेंगे।